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क्या कहूँ? / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
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कितना गहरा घाव हुआ मैं क्या कहूँ
पूछो चुभने वाले तीखे तीर से।
तीर चुभा कितना यह आकर पूछ लो
मेरे नयनों में झरनों के नीर से॥
नीर बहा नयनों से कितना आज तक
पूछो नीर पोंछने वाले चीर से।
चीर चीर हो गये चीर कितने यहाँ
पूछो, फटी पड़ीं अनगिनत धजीर से॥
5.11.58