क्या कहूँ दिल माइल-ए-ज़ुल्फ़-ए-दोता / ज़फ़र
क्या कहूँ दिल माइल-ए-ज़ुल्फ़-ए-दोता क्यूँकर हुआ
ये भला चंगा गिरफ़्तार-ए-बला क्यूँकर हुआ.
जिन को मेहराब-ब-इबादत हो ख़म-ए-अबरू-ए-यार
उन का काबे में कहो सजदा अदा क्यूँकर हुआ.
दीदा-ए-हैराँ हमारा था तुम्हारे ज़ेर-ए-पा
हम को हैरत है के पैदा नक़्श-ए-पा क्यूँकर हुआ.
नामा-बर ख़त दे के उस नौ-ख़त को तू ने क्या कहा
क्या ख़ता तुझ से हुई और वो ख़फ़ा क्यूँकर हुआ.
ख़ाक-सारी क्या अजब खोवे अगर दिल का ग़ुबार
ख़ाक से देखो के आईना सफ़ा क्यूँकर हुआ.
जिन को यकताई का दावा था वो मिस्ल-ए-आईना
उन को हैरत है के पैदा दूसरा क्यूँकर हुआ.
तेरे दाँतों के तसव्वुर से न था गर आब-दार
जो बहा आँसू वो दुर्र-ए-बे-बहा क्यूँकर हुआ.
जो न होना था हुआ हम पर तुम्हारे इश्क़ में
तुम ने इतना भी न पूछा क्या हुआ क्यूँकर हुआ.
वो तो है ना-आशना मशहूर आलम में 'ज़फ़र'
पर ख़ुदा जाने वो तुझ से आशना क्यूँकर हुआ.