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क्या कहें कैसे हुए हैं, लोग देखो आजकल / कमलकांत सक्सेना
Kavita Kosh से
क्या कहें कैसे हुए हैं, लोग देखो आजकल।
हर जगह बिखरे हुए हैं, लोग देखो आजकल।
पराए तो पराए हैं, गैर अपने भी हुए
इस कदर बिफरे हुएहैं, लोग देखो आजकल।
वक्त की पाबन्दियाँ क्यों रास आएँगी उन्हें
हर समय ठहरे हुए हैं, लोग देखो आजकल।
झील, नदियाँ और सागर डूब तो जाएँ मगर
रेत से लहरे हुए हैं, लोग देखो आजकल।
चीखती हैं साँस लेकिन दंश देकर छिप गये
सर्प हैं, बहरे हुए हैं, लोग देखो आजकल।
यौवना के रूप पर नज़रें गड़ाते सब यहाँ
उम्र पर उतरे हुए हैं, लोग देखो आजकल