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क्या कहें / हरीश भादानी
Kavita Kosh से
क्या कहें
किसको कहें
कैसी तलाश थी
देखा ही नहीं
लिए हुए हमें
उतारती ही गई
कुआं.....नदी.....
समुंदर.....तलहटी
शहर जंगल
भीतर तक
कड़वा गए सब
जून’ 78