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क्या कहे अखबार वालों से व्यथा औरत / जहीर कुरैशी
Kavita Kosh से
हम बीस-तीस सालों में कितने बदल गए
अब तो हमारे बीच के रिश्ते बदल गए
अपराधियों ने लोगों के चेहरे चुरा लिए
चेहरे चुरा लिए तो मुखौटे बदल गए
बच्चे हमारी बातों पए हँसते हैं आजकल
उनकी किशोर आँखों के सपने बदल गए
इस राजनीति में भी बहुत दाँव-पेंच हैं
अब राजनीति के भी करिश्मे बदल गए
फ़ैशन भी क्या अजीब है कुछ सोचती नहीं
तन तो वही पुराना है कपड़े बदल गए
इन्सान से तो पहले ही विश्वास उठ गया
विश्वास किसका कीजिए, कुत्ते बदल गए
पन्द्रह ही बरस दूर है इक्कीसवीं सदी
इस बीसवीं सदी के भी चश्मे बदल गए