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क्या कान में किसी ने कहा राज़दार के / पूजा बंसल
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क्या कान में किसी ने कहा राज़दार के
नखरे उठा रही हूँ तभी जानकार के
बेख़ौफ़ हो ए दिल जरा दुनिया के सामने
तमग़ा नहीं मिलेगा मुहब्बत को हार के
थी जंग ख़ुद की ख़ुद से तो इतना ही कर सकी
हथियार ले लिया था मगर सर उतार के
ख़ामोश सिसकियाँ यही तन्हाई से कहें
अरमान नीचे दब गए कर्तव्य भार के
किश्तें चुका रहा है मेरी रात का सुकूँ
सूरज से माँग बैठी उजाले उधार के
मुश्क़िल वहीं था मोड़ जहाँ मुड़ न पाए तुम
पलटी थी कितनी बार मैं तुमको पुकार के