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क्या किया जाये यही अल्लाह को मंज़ूर है / ‘शुजाअ’ खावर
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क्या किया जाए यही अल्लाह को मंज़ूर है
दिल्ली आकर भी ये लगता है कि दिल्ली दूर है
वो तजल्ली<ref>प्रकाश</ref> है न मूसा<ref>हजरत मूसा</ref> है , न कोहे-तूर <ref>माउण्ट सायनाई</ref> है
लम्हा-ए-मौजूद <ref>वर्तमान क्षण</ref> इम्कानात<ref>संभावनाओं </ref> से भरपूर है
हर मिसल<ref>लोकोक्ति</ref> को तजरिबों <ref>अनुभव</ref> ने मेरे झुठलाया बहुत
तजरिबे गुमनाम हैं और हर मिसल मशहूर है
आजकल बस शायरी करता है रोज़-ओ-शब ‘शुजाअ’
शह्र ही ऐसा है, बेचारा बड़ा मजबूर है
शब्दार्थ
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