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क्या कुछ / देवेन्द्र कुमार
Kavita Kosh से
चलो कुछ
क्या कुछ जोड़ें
सुबह सूखी
शाम बासी रोटियाँ तोड़ें
सभी सागर
सौदागर
सभी नदियाँ
रेत
ना तुम्हीं ने कह दिया तो
क्या कहेंगे खेत ?
बात का बत्तख
कहीं छोड़ें
पाँव से सिर तक
सभी क़िस्से
खड़े हैं
आदिवासी-से
पड़ी जो रास्ते की नींव
ईंटों की
क़समें तोड़ें
चलो कुछ
क्या कुछ जोड़ें