भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

क्या क्या रंग दिखायेगा / आनंद कुमार द्विवेदी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उसका यूँ मुझको तड़पाना क्या क्या रंग दिखायेगा
दिल पर जादू सा कर जाना क्या क्या रंग दिखायेगा

इन आँखों में तू ही तू है, कैसे और ख़्वाब पालूं
ऐसी आँखों को छलकाना क्या क्या रंग दिखायेगा

तुझको खुदा बनाकर मैंने सब कुछ तेरे नाम किया
क़ातिल का मुंसिफ हो जाना क्या क्या रंग दिखायेगा

तेरा आना ना-मुमकिन हो तो अपनी यादों से कह
यूँ फागुन में आना जाना क्या क्या रंग दिखायेगा

कहते थे ऐसे मत देखो, मुझको कुछ हो जाता है
अब उनका ही नज़र चुराना क्या क्या रंग दिखायेगा

पता नहीं ‘आनंद’ कहाँ है खुद में है या दुनिया में
उसका यूँ फक्कड़ हो जाना क्या क्या रंग दिखायेगा