क्या खबर थी आतिशीं आब-ओ-हवा हो जाऊँगा / शीन काफ़ निज़ाम
क्या ख़बर थी आतिशीं आबो-हवा हो जाऊँगा
ख़ाक-ओ-खूं मुस्तकिल मैं सिलसिला हो जाऊँगा
इब्तिदा हूँ आप अपनी इन्तिहा हो जाऊँगा
बारिशों का कुर्ब पाकर फिर हरा हो जाऊँगा
झाड़ियों की उँगलियाँ लपकेंगी गर्दन की तरफ
पहली शब के आख़िरी पल की दुआ हो जाऊँगा
आसमां की सम्त उठेंगे बगूले और मैं
रफ़्ता-रफ़्ता इक मुक़ाम-ए-गुमशुदा<ref>खोया हुआ स्थान</ref> हो जाऊँगा
चिलचिलाती धूप में अपना सरापा देख कर
रात की तन्हाइयों का वसवसा<ref>अनिष्ट की आशंका</ref> हो जाऊँगा
कुछ न कुछ खोता चला जाऊँगा इक-इक मोड़ पर
और फिर मैं एक दिन तेरा कहा हो जाऊँगा
खुरदुरे और खोखले बरगद का बाज़ू थाम कर
सुबहे-सीमीं<ref>रजत प्रभात</ref> का मआले-तैशुदा<ref>पूर्व निश्चित अंत</ref> हो जाऊँगा
जब कोई झुकने लगेगा शाम की दहलीज़ पर
गुम्बदे-मोहूम<ref>गुम्बद जो केवल भ्रम भ्रम हो</ref> का मैं मुब्तना<ref>बुनियाद डाला हुआ</ref> हो जाऊँगा
फड़फड़ाते देखकर तारों में कफ़्तर को "निज़ाम"
उँगलियों की उलझनों में मुब्तला<ref>ग्रस्त</ref> हो जाऊँगा