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क्या ख़बर थी कोई रूसवा-ए-जहाँ हो जाएगा / शेर सिंह नाज़ 'देहलवी'

क्या ख़बर थी कोई रूसवा-ए-जहाँ हो जाएगा
कुछ न कहना भी मिरा हुस्न-ए-बयाँ हो जाएगा

अपने दीवाने का तुम जोश-ए-जुनूँ बढ़ने तो दो
आस्तीं दामन गिरेबाँ धज्जियाँ हो जाएगा

आशिक़-ए-जाँ-बाज़ हैं हम मुँह ने मोड़ेंगे कभी
तुम कमाँ से तीर छोड़ो इम्तिहाँ हो जाएगा

टूटी फूटी क़ब्र भी कर दो बराबर शौक़ से
ये भी अपनी बे-निशानी का निशाँ हो जाएगा

शादयाने बज रहे हैं आज जिस जा ‘नाज़’ कल
दम ज़दन में देख लेना क्या समाँ हो जाएगा