क्या गाऊँ जो मैं तेरे मन को भा जाऊँ।
प्राची के वातायन पर चढ़
प्रात किरन ने गाया,
लहर-लहर ने ली अँगड़ाई
बंद कमल खिल आया,
मेरी मुस्कानों से मेरा
मुख न हुआ उजियाला,
आशा के मैं क्या तुमको राग सुनाऊँ।
क्या गाऊँ जो मैं तेरे मन को भा जाऊँ।
क्या गाऊँ जो मैं तेरे मन को भा जाऊँ।
प्राची के वातायन पर चढ़
प्रात किरन ने गाया,
लहर-लहर ने ली अँगड़ाई
बंद कमल खिल आया,
मेरी मुस्कानों से मेरा
मुख न हुआ उजियाला,
आशा के मैं क्या तुमको राग सुनाऊँ।
क्या गाऊँ जो मैं तेरे मन को भा जाऊँ।