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क्या जमाना आगया / शिवदीन राम जोशी
Kavita Kosh से
संसार में बारूद बिछी, कब आग लग जाए |
भडाका एक ही होगा, किसे अब कौन समझाए ||
देश में नेता ना कोई काम करते हैं |
कुर्सियों पर बैठ कर आराम करते हैं ||
ईरषा फैली जगत में, आस भी निराश है |
दिखते है दूर सबही, कौन किसके पास है ||
धर्म तो निरपेक्ष माना, ना कहीं प्रकाश है |
हो रही धोखाधड़ी, अब उठ गया विस्वास है ||
पुन्य पातालों गया, दुःख पाप सारे छागया |
शिवदीन देखो गौर से ये क्या जमाना आगया ||
बेशर्म दुनियां देखकर वो शरम भी शरमा गई |
जलन में जलती है काया बुद्धि भी चकरा गई ||
मरियाद सब टूटण लगी, मानव भी दानव हो रहे |
लोभ की चादर पड़ी, अब क्या कहें सब सो रहे ||
कौन सुखिया कौन दुखिया, ना कोई पहचान है |
कौन सज्जन कौन दुर्जन, ना किसी को ज्ञान है ||