क्या जमानु ऐग्या / सुरेश स्नेही
क्या जमानु ऐग्या चुचौं,
बसग्याळ समौं से पैळी,
बसन्त पैळी ऐ जाणि चा,
फसलपात होण से पैळि,
पुंगड़युं मा सूखि जाणि चा,
रूडि अब ह्यंून्द मा छन पण्णी,
बजर बीदा द्योकु पोणु चा,
कुयेड़ि बिना बरखै च लौंकणि,
ह्यंू सुद्दी बगणु चा,
क्या जमानु ऐग्या भुळौं।
ज्वान छोरांेकि उमर से पैळी,
मुण्डळि सपेत ह्वे जाणि चा,
नौनौ का बांध्या छन चुफळा,
अर नौन्युकि चुफळि कटि चा,
क्या जमानु ऐग्या कका।
ब्यो बिवैकि नौनु,
ब्वे-बाबु पुछणु नीचा,
बूढ़-बूढ़्या रौन्दिन अब यखुळि,
तौंकु क्वी पुछदारू नीचा,
क्या जमानु ऐग्या बोढ़ा।
नौनि पैन्नि छन अब जीन्स पैंट,
कुर्ता-सुलार कु अब फैशन नीचा,
चूड़ि-बिन्दि त अब हरचि गैनि,
सौ-सिंगारो अब कन्न बि क्या चा,
क्या जमानु ऐग्या बोड़ी।
सब्बी ह्वेगिन अब दरोऴा,
चा पाणी वाळु अब क्वी नीचा,
घ्यू-दूध त बिश होयुंचा युंतैं,
तबि त अब मुखड्युं मा रस्याण कैकि नीचा,
क्या जमानु ऐग्या चुचौं,
लिखण त हौर बि छौ मिन,
पर लोकलाज मितैबि चा,
मेरा मनकि बात समझि जयां तुम,
समझदारों तैं इथगै बिन्डि चा,
क्या जमानू ऐग्या बिधाता।