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क्या ज़रूरत दियासलाई की / विजय वाते
Kavita Kosh से
फिक्र हमको थी जगहँसाई की।
वरना क्या बात थी ज़ुदाई की।
उसकी आँखों से नीन्द रूठी है,
उसने मुझसे जो बेवफ़ाई की।
एक तक़रीर सिर्फ काफ़ी है,
क्या ज़रूरत दियासलाई की।
तितलियाँ लद गई है रिक्शों पर,
पहली तारीख है जुलाई की।
फिर मिलेंगे 'विजय' ये मत कहना,
पीर झीलती नहीं ज़ुदाई की।