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क्या ठिकाना / दिनेश कुमार शुक्ल
Kavita Kosh से
क्या ठिकाना
चल रहा है रास्ता
जा रहे हैं ऊँट आया आश्विन
क्या ठिकाना वक्त का
किस ओर करवट ले
क्या ठिकाना
रास्ता किस ओर
कब मुड़ जाय
टकटकी-सी बँधी है
घुमड़ता है मेह
स्नेह की वर्षा नहीं थमती
दूर जाता जा रहा है वो
भूलने जैसा
गयी वर्षा
शरद आया
खुली राहें
वक्त आया भटकने का
और मन में
उमड़ता है मेह
जा रही है राह
यात्रा जा रही है
कब कहाँ किस ठौर
हो अगला ठिकाना क्या ठिकाना!