क्या तमाशा देखिए तहसील-ए-लाहासिल में है / सरवर आलम राज़ ‘सरवर’
क्या तमाशा देखिए तहसील-ए-लाहासिल में है
एक दुनिया का मज़ा दुनिया-ए-आब--ओ-गिल में है
देख ये जज़्ब-ए-मुहब्बत का करिश्मा तो नहीं
कल जो तेरे दिल में था वो आज मेरे दिल में है
मैं भला किस से कहूँ, क्या क्या कहूँ, कैसे कहूँ?
मौत से पहले ही मर जाने की ख़्वाहिश दिल में है
मौज-ओ-शोरिश,इन्क़िलाब-ओ-इज़्तिराब-ओ-रुस्त-ओ-ख़ेज़
है मज़ा साहिल में कब जो दूरी-ए-साहिल में है
झाँक कर दिल में ज़रा यह तो बता दीजिए, हुज़ूर!
मेरी कि़स्मत का सितारा कौन सी मंज़िल में है?
मुझको भाता ही नहीं इक आँख हुस्न-ए-कायनात
हाँ! मगर वो जो तिरे रुख़्सार के इक तिल में है!
कर दिया बेगाना-ए-ग़म्हा-ए-दुनिया इश्क़ ने
मुझको आसानी यही तो अपनी इस मुश्किल में है
तेरा माज़ी हाल से दस्त-ओ-गरेबां गर रहा
मैं बताता हूँ जो "सरवर" तेरे मुस्तक़्बिल में है