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क्या तमाशे कर रहा है आदमी / आनंद कुमार द्विवेदी
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क्या तमाशे कर रहा है आदमी
अब नज़र से गिर रहा है आदमी
बिन लड़े जीना अगर संभव नहीं
बिन लड़े क्यों मर रहा है आदमी
हर जगह से हारकर, सारे सितम
औरतों पर कर रहा है आदमी
देश की नदियाँ सुखाकर, फ़ख्र से
बोतलों को भर रहा है आदमी
हाथ में लेकर खिलौने एटमी
आदमी से डर रहा है आदमी
योग, पूजा, ध्यान नाटक है, अगर
भूख से ही लड़ रहा है आदमी
है पड़ी स्विच-ऑफ दुनिया जेब में
ये तरक्की कर रहा है आदमी