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क्या तुमने सुना? / विनोद शर्मा

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कुछ तुमने कहा
कुछ मैंने सुना
यों-
जो तुमने कहा
वो मैंने नहीं सुना
और जो मैंने सुना
वो तुमने नहीं कहा

मगर अब नैतिकता का तकाजा है
कि सुनने की मर्यादा का उल्लंघन करने के लिए
मुझे माफी मांगनी चाहिए
मगर किससे?
कहने वालों से यानी तुमसे

वो भी तब जबकि
दुनिया को ठंडी उदासीनता के विशाल समुद्र में
तुम्हरी और मेरी जिंदगी को गर्माने वाली
देह की आंच अब लगभग ठंडी हो चुकी है
और दोस्तो, पड़ोसियों और रिश्तेदारों की
मतलबपरस्ती और ईर्ष्या के अंधकार में
उजाला फैलाने वाली
आत्मा के प्यार की दिव्य आभा
अब पड़ चुकी है मद्धम

फिर भी लो
तुम्हीं से मांगता हूं मैं क्षमा
क्या तुमने सुना?
जो मैंने कहा।