क्या तुम्हारे सामने
कभी ऐसा क्षण नहीं आया
सहसा
एक ऐसी दिव्य ज्योति
जो वेग से ध्वस्त कर देती है
इन सारे बुलबुलों को,
सारे प्रसाधन को,
वैभव को
इन आतुर व्यावसायिक लक्ष्यों को,
ग्रन्थ, राजनीति, कला
अज्ञात प्रणय को
सर्वथा शून्य में
सबको मिला देती है।
1881
अंग्रेज़ी से अनुवाद : चन्द्रबली सिंह