क्या तुम्हीं हो हेमन्त प्रियतम / साँवरी / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
प्रियतम
तुम्हारी ही तरह सुकुमार
सौम्य, शालीन और सुन्दर
हेमन्त आ गया
शरत् बीतते ही
सच कहती हूँ प्रियतम
लगता है
तुम्हीं आये हो।
आम्रवृक्ष में लग गयी है
मुजरी की कनी
नये-नये कोमल पत्ते।
प्रियतम
याद आ गया है
वसन्त पंचमी का वह दिन
बेल के वृक्ष नीचे
तुम्हारा पाती थमाना
रह-रह कर मुस्कुराना
गुलाल लेकर
मेरे गालों को रंगाना
आज सब कुछ
स्मृति में लौट आये हैं।
प्रियतम
तुम्हारी ही तरह सुकुमार
सौम्य, शालीन और सुन्दर
हेमन्त आया है
शरत बीतते ही
सच कहती हूँ प्रिय
लगता है
तुम्हीं आये हो।
बीती रात
मैंने सपने में एक औघड़ देखा
सारी देह सिन्दूर से सनी
भाल पर त्रिपुण्ड लगाए
दोनों बड़ी-बड़ी आँखें बन्द
अधरों से कुछ बुदबुदाता
तप करते-करते ही शायद
उसकी देह ऐसी सूख गई थी
जैसा कि काँटा
लेकिन तब भी
दमकती थी देह।
कि मैं उसके समीप जाने को
सँवरने लगी
करने लगी श्रृंगार
किस-किस तरह से नहीं
हेमन्ती हवा ने
बह-बह कर
मेरे जिन अधरों को
सुखा दिया था
उन्हें रससिक्त कर
हाथों में
गुग्गुल, अगरू की धूप लिए
बढ़ने लगी उसी ओर
पैरों को संभाल-संभाल
कि तभी
सुबह के उजाले में
गगला हुआ काग
रात के अंधेरे में भी डाक उठा
जोर-जोर से।
पूछने पर
सर को हिलाए
‘हाँ’ का सगुन उचार गया
लेकिन तभी नींद टूट गई
सोचती हूँ
यह हेमन्त
और हाय ऐसा सपना।