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क्या तुम इतना नहीं जानते हो ? / तारा सिंह
Kavita Kosh से
- दिन-रात उजाले की इच्छा रखनेवालो
- अंधेरे से क्यों डरा करते हो
- दिन के बाद, रात आती है
- तब कहीं यह जीवन पूर्ण होता है
- क्या तुम इतना नहीं जानते हो ?
- तुम प्राणी निमित्त- मात्र हो
- गीली मिट्टी का पात्र- मात्र हो
- कब तक अपनी भट्टी में किसको तपाएगा
- यह सब तो कुम्हार तय करेगा
- क्या तुम इतना नहीं जानते हो ?
- बड़े- बड़े महलों की आकांक्षा दिल में संजोए
- अपने घर-मंदिर की उपेक्षा क्यों करते हो
- सबों की तकदीर का साँचा एक सा नहीं है, होता
- यह तो पात्रों के आकार पर है, निर्भर करता
- क्या तुम इतना नहीं जानते हो ?
- यह दुनिया एक सरायखाना है
- जिसको तुम घर समझते हो
- हम सब, सभी मुसाफिर हैं
- जिसे तुम अपना कहते हो
- क्या तुम इतना नहीं जानते हो ?
- जीवन- नदिया के गहरे पानी में
- तुम नित्य मन- जाल बिछाते हो
- पर तुम्हीं कहो, आत्मा-मीन को पकड़ पाए हो
- मीन बड़ा है और जाल है छोटा
- क्या तुम इतना नहीं जानते हो ?
- जिसकी मरजी से दुनिया में आए हो
- उसी पर सब कुछ अपना छोड़ दो
- वो चाहे तो, राई से पहार बना दे और
- पहार को राई कर दे
- क्या तुम इतना नहीं जानते हो ?
- इस दुनिया में सभी हैं दुखी
- अपने- अपने सुख के लिए
- इसलिए तुम संग मिलकर, रोनेवाला
- इस दुनिया में कोई नहीं है
- क्या तुम इतना नहीं जानते हो ?