Last modified on 21 मार्च 2017, at 11:01

क्या तुम बताओगी? / हरिपाल त्यागी

कंधे पर टिका हुआ
ट्रंक मन भर का,
बिस्तर भी भारी है
पीठ पर बंधा हुआ।
सामने से आ रहा
गोरखा सैनिक एक।
पसीने से तर-ब-तर
हांफता-झपटता हुआ।

गुमखाल उतरा था
मिली न आखिरी बस
लैंस डाउन जाने का
पूछ रहा शॉर्ट कट।

नया-नया आया है,
उसे नहीं मालूम-
(दिल्ली नहीं है यह)
मंजिल तक पहुंचने का
यहां न कोई बैक डोर,
यहां न कोई शॉर्ट कट!