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क्या तुम से करें अर्ज़े—तमन्ना सरे—बाज़ार / सुरेश चन्द्र शौक़

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क्या तुम से करें अर्ज़े—तमन्ना सरे—बाज़ार

अच्शा नहीम हर बात का चर्चा सरे—बाज़ार


इक तुम हो कि तन्हाई में भी रौनक़े—दुनिया

इक हम हैं कि लगते हैं जो तन्हा सरे—बाज़ार


झगड़ा है तो तय कर लें कहीं बैठ के आओ

क्यों सब्को दिखाते हो तमाशा सरे—बाज़ार


गिरतों को यहाँ कोई नहीं थामने वाला

ऐ दोस्त सँभल कर ज़रा चलना सरे—बाज़ार


दुज़दीदा नज़र,रुख़ पे हया,लब पे तबस्सुम

किस ढंग से उसने हमें लूटा सरे—बाज़ार


गुस्ताख़ निगाही से परेशाँ हो अगर तुम

कर लो रुख़े—पुरनूर पे पर्दा सरे—बाज़ार


एहसास के पर्दे पे मनक़्क़श है अभी तक

देखा था कभी वो रुख़े—ज़ेबा सरे—बाज़ार


ख़ुशफ़हम न हो इतना कि,कभी सुन कि तिरे दोस्त

कहते हैं तिरे बारे में क्या—क्या सरे—बाज़ार


बाज़ार में आई नई तहज़ीब कि ऐ ‘शौक़’!

तहज़ीब का निकला है जनाज़ा सरे—बाज़ार.


दुज़दीदा नज़र=कनखियों से देखना;तबस्सुम=मुस्कान ; मनक़्क़श=चित्रित;रुख़े—ज़ेबा=सुंदर मुखड़ा.