क्या नए साल में मिलोगी? / विमल कुमार
क्या तुम नहीं मिलोगी
अब नए साल में
या फिर मिलोगी
तो उन उलझनों की तरह मिलोगी
जो पैदा होती रहीं तुमसे मिलने के बाद मेरे मन में
क्या तुम मिलोगी
एक नई मुस्कान के साथ
या फिर अपनी तकलीफों के रेगिस्तान के साथ
नए साल में
क्या तुम एक नए गीत की तरह मिलोगी
जिसे गुनगुनाना हो आसान
या एक ऐसे संगीत की तरह मिलोगी
जिसे बजाना हो मेरे लिए बहुत मुश्किल
क्या तुम एक ऐसी भाषा की तरह मिलोगी
जिसे समझना हो कठिन
या क्या तुम ऐसी किताब की तरह मिलोगी
जिसे पढ़ना हो मेरे लिए अत्यंत सरल
इस बार तुम मिलोगी
इस कोहरे और ठंड में
तो किस तरह मिलोगी
नए पत्तों और नए फूलों के रूप में?
या क्या तुम मिलोगी
धूप की तरह मुझ से
या बर्फ की चादर की तरह मिलोगी
इस जाड़े की रात में
क्या तुम वाकई एक जलती हुई मोमबत्ती की तरह मिलोगी
मिलोगी एक नया स्वप्न लिए
एक नई उम्मीद के साथ
जिस तरह कई लोग मिले थे
मेरे शहर में एक-दूसरे के साथ पिछले दिनों जंतर मंतर पर
या फिर नहीं मिलोगी
नए साल में
जिस तरह तारे कभी नहीं मिलते
धरती के लोगों से
आयरा,
तुम केवल इतना बता दो
क्या तुम मेरी मंजिल की तरह मिलोगी
या फिर एक मृग मरीचिका की तरह
या फिर कभी नहीं मिलोगी
अब उस तरह
जिस तरह तुम पहली बार मुझसे मिली थी निश्चल
बस इतनी सी प्रार्थना है
अगर तुम मिलना कभी मुझसे
तो इस तरह कभी नहीं मिलना
जिस तरह तुम मिलती रही हो
अब तक
एक झिझक
और अविश्वास के साथ
मुझसे
मिलना
जब भी
एक भरोसे के साथ
मिलना
अपनी आँखों में
एक चमक लिए
इस जीवन के
लिए ही मिलना
जो अब बहुत कम बचा है
काल के क्रूर के हाथों में