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क्या नहीं कहा प्रिय! "मंजु-अँगुलियाँ खेलें प्रेयसि-अलकों में / प्रेम नारायण 'पंकिल'
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क्या नहीं कहा प्रिय! "मंजु-अँगुलियाँ खेलें प्रेयसि-अलकों में।
तारक-चुम्बित सित-तुहिन-बिन्दु झलकें वसुधा की पलकों में।
प्रातः समीर सुन्दरि-कपोल छू रोमांचित कर जाता हो ।
सागर निर्झरिणी को धरणी को इन्दु सप्रेम मनाता हो ।
सरसिज-संकुल-सर दिशा व्यर्थ जिसमें शुक-पिक-स्वर घात न हो।
देखूं न कभीं गिरि-शिखर जहाँ पर निर्झर-नीर-निपात न हो ?"
आ प्रेम-पुरोहित ढूँढ़ रही बावरिया बरसाने वाली क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवनवन के वनमाली ॥51॥