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क्या पता कब कयामत मेरे नाम आ जाये / तारा सिंह

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क्या पता कब कयामत मेरे नाम आ जाये
और बीमार दिल को बेदवा आराम आ जाये

जमीं से आसमां तक इंतजार का आलम कब
उसका मुल्क छोड़ जाने का पैगाम आ जाये

यही सोचकर कभी सब्र करता, कभी तड़पता है
दिल, कहीं जाहिल के साथ न मेरा नाम आ जाये

निगाहें-शौक को सरे-बज्म बेहिजाब न कर, मुझे
डर है, तुम पे हमारी चाहत का न इलजाम आ जाये

जिस रहबर से अपनी राह जुदा कर आया हूँ,कहीं दिल
के मिलने की उम्मीद में,उसी से न काम आ जाये

1. सारी दुनिया में 2. बेशर्म 3. पथ प्रदर्शक