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क्या पता किसकी निगहबानी में था / ज्ञान प्रकाश विवेक
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क्या पता किसकी निगहबानी में था
घ था कच्चा और वो पानी में था
मैंने लपटों को उठाया जिस क़दर-
सच कहूँ, मैं ख़ुद भी हैरानी में था
खोलता कोई नहीं था साँकलें
वक़्त का मारा पशेमानी में था
आँख का तालाब छलका था ज़रा
शोर-सा कुछ मन की वीरानी में था
मेमने की ज़िन्दगी का सोचिए,
एक चीता उसकी अगवानी में था.