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क्या पता मोजिज़ा हुआ कैसे / नवीन जोशी

क्या पता मोजिज़ा हुआ कैसे,
दर्द मेरा दवा हुआ कैसे।

सर झुका कैसे बुत के सजदे में,
और सजदा रवा हुआ कैसे।

एक ख़ामोश दिल की धड़कन पर,
शोर इतना बपा हुआ कैसे।

हादसा तय था पर हुआ ही नहीं,
जाने ये हादसा हुआ कैसे।

जो मुझे पढ़ ले बस यही पूछे,
'एक सफ़्हा फटा हुआ कैसे?'

मैं तुझे इक गुनाह समझा था,
फिर तू मेरी सज़ा हुआ कैसे?

गर न छूटूँ मैं अपनी शर्तों पर,
तो बताओ रिहा हुआ कैसे?

जो कि पिंजरा न हो तो उड़ जाए
फिर वो पंछी मेरा हुआ कैसे?

तू परेशाँ है लफ़्ज़-ए-कुन लेकर,
मैं ये सोचूँ ख़ुदा हुआ कैसे।