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क्या पिलाया है मुझे तुम ने निगाहे नाज़ से / प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'

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क्या पिलाया है मुझे तुमने निगाहे नाज़ से
सरखुशी की लहर उट्ठी है दिले नासाज़ से

कर दिया बिस्मिल मुझे पहली नज़र से आपने
इल्म मुझको हो गया अंजाम का आग़ाज़ से

हंस न इतनी ज़ोर से मेरे जनाज़े के क़रीब
आ ना जाये जान मुर्दे में तेरी आवाज़ से

आप भी रोये उन्हें भी वक़्फे गिरियां कर दिया
दर्दे दिल उनको सुनाया हमने इस अंदाज़ से

यादे दिल ग़म बन गई और दम मेरा घुटने लगा
क्यों न फूटें ग़म के नग़मे मेरे दिल के साज़ से

हो गया इफ़शां अगर अंजान राज़े-दिल तो क्या
हमको पहले ही यही उम्मीद थी हमराज़ से।