भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
क्या बतलाऊँ कितनी ज़ालिम होती है जज़्बात की आँच / अनवर जलालपुरी
Kavita Kosh से
क्या बतलाऊँ कितनी ज़ालिम होती है जज़्बात की आँच
होश भी ठन्डे कर देती है अक्सर एहसासात की आँच
कितनी अच्छी सूरत वाले अपने चेहरे भूल गये
खाते खाते खाते खाते बरसों तक सदमात की आँच
सोये तो सब चैन था लेकिन जागे तो बेचैनी थी
फर्क़ फ़क़त इतना ही पड़ा था तेज़ थी कुछ हालात की आँच
हम से पूछो हम झुल्से हैं सावन की घनघोर घटा में
तुम क्या जानों किस शिद्दत की होती है बरसात की आँच
दिन में पेड़ों के साए में ठंडक मिल जाती है
दिल वालों की रूह को अक्सर झुलसाती है रात की आँच