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क्या बतलाएँ दिल को कैसा लगता है / ओंकार सिंह विवेक

क्या बतलाएँ दिल को कैसा लगता है,
बदला-सा जब उनका लहजा लगता है।

रोज़ पुलाव पकाओ आप ख़यालों के,
इसमे कोई पाई-पैसा लगता है।

मजबूरी है बेघर की,वरना किसको-
फुटपाथों पर सोना अच्छा लगता है।

तरही मिसरे पर इतनी आसानी से,
तुम ही बतलाओ क्या मिसरा लगता है।

आज किसी ने की है शान में गुस्ताख़ी,
मूड हुज़ूर का उखड़ा-उखड़ा लगता है।

चेहरे पर मायूसी,आँखों मे दरिया,
तू भी मुझ-सा वक़्त का मारा लगता है।

बाल भले ही पक जाएँ उसके,लेकिन-
माँ-बापू को बेटा बच्चा लगता है।