भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

क्या बात हुई क्यूँ ये परेशान बहुत है / संकल्प शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

क्या बात हुई क्यूँ ये परेशान बहुत है,
दिल अपनी ख़ताओं पे पशेमान बहुत है।

मैं जानता हूँ जितना बड़ा दिल है तुम्हारा,
लेकिन मेरे रहने को ये मकान बहुत है।

मैं भूलने न पाऊँगा किस हाल भी तुम्हें,
वैसे तुम्हें ये काम तो आसान बहुत है।

क्या आरजू करूँ मैं किसी देवता की अब,
मिल जाए फ़कत एक ही इन्सान बहुत है।

यारो ख़ुदा के वास्ते उसको सज़ा न दो।
कातिल ही सही मेरा पर नादान बहुत है।

ना छीनो मेरे माजी का सरमाया तो मुझसे,
जीने के लिए मुझको ये सामान बहुत है।