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क्या भला मुझको परख़ने के नतीजा निकला / 'मुज़फ्फ़र' वारसी

क्या भला मुझको परख़ने के नतीजा निकला
ज़ख़्म-ए-दिल आप की नज़रों से भी गहरा निकला

तोड़कर देख लिया आईना-ए-दिल तूने
तेरी सूरत के सिवा और बता क्या निकला

तिश्नगी जम गयी पत्थर की तरह होंठों पर
डूब कर तेरे दरिया में मैं प्यासा निकला