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क्या मुझे दोबारा ... / नाज़िम हिक़मत / सुरेश सलिल

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क्या मुझे दोबारा जीनी थी ज़िन्दगी
(मेरा मतलब आबेहयात पीने से नहीं है)
क्या दोबारा खुलने थे सारे दरवाज़े
हालाँकि एक बार फिर
         दाख़िल हो रहा हूँ मैं इस कोठरी में,
मैं जियूँगा अपना ख़ून टपकाते हुए
         और हैरत से भरा हुआ हूँ पहली-सी मौहब्बत से ।
क्या मुझे दोबारा जीनी थी ज़िन्दगी !

१९४९

अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल