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क्या मृत्यु के पश्चात् जीवन है? / तोताबाला ठाकुर / अम्बर रंजना पाण्डेय

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'प्रिय नलिनीकान्त, द्रुत चले आओ
नहीं, मत आओ, मुझे सन्निपात हुआ है
प्रलाप करती हूँ, भीषण ज्वर पाँखभर से नहीं उतरा
रक्त जाता है प्रतिदिन किन्तु तुम व्यथित मत होना
मैं शीघ्र ही स्वस्थ होकर नवीन बालुचर धोती पहनूँगी
तुम्हारी दासी'

केवल इतना कहा था पत्र में और रात्रि
खाटोलि के निकट खड़ी दिखाई दी थी सुबकती
दूसरे दिनाँक नलिनीकान्त लौट आया क़ुतुबपुर
'सुधांशुबाला चली गई'

उसके पश्चात् नलिनीकान्त यन्त्री मोशाय जिन्होंने
मरन तक जीवन माना था अब तक
जाना था कि मरकर मानुष भस्म की पोटली रह जाता है
उन्हें सुधांशुबाला यत्र-तत्र दे जाती थी दर्शन
कभी उसके केशों की जबाकुसुम के तैल की गन्ध से
भर जाते नासापुट आते-जाते

मद्रास गया मृत स्त्री से बात करने
एक बार प्राण से प्राण का आलिंगन करने
एक बार सुधांशुबाला के पुकारने पर
सही काल उस तक पहुँचने को
कभी मिलती भी थी सुधांशुबाला, बात करती आधी-अधूरी
पुनः अन्तर्धान

एक योगी ने वचन दिया साक्षात मिलवाने का
पल बेला को प्रकट हुई पुनः अन्तर्धान
बीत गई तरुण वय, केश श्वेत होने को आए

मृत स्त्री को ढूँढता नलिनीकान्त चट्टोपाध्याय
परमहंस निगमानन्द सरस्वती हो गया
किन्तु पुनः कभी भेंट नहीं हुई सुधांशुबाला से

मरनेवाले लौट कर नहीं आते कभी न मरकर
हम मिल पाएँगे कभी उनसे
मरन केवल अन्धकार है जहाँ प्रेम का दीपक
नहीं करता कोई आलोक
कोई आशा नहीं दिखती । हम सब कितने अकेले हैं, बन्धु !