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क्या यही देश प्रेम है? / पद्मजा बाजपेयी

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सुना है, स्वतंत्रता की लड़ाई में,
सब एक होकर चले थे,
पर आजादी के बाद,
हम एक दूसरे से कट गये।
क्या यही देश प्रेम है?
हिन्दी, संस्कृत, उर्दू, मराठी,
तमिल, तेलगू, कन्नड, उड़िया,
बंगाली, पंजाबी, कश्मीरी
को छोड़, अंग्रेज़ी पढ़ने लगे।
क्या यही देश प्रेम है?
संसार का सिरमौर,
धन सम्पति का भंडार,
हर वस्तु की पैदावार,
क्यो फिर कर्ज से लदने लगे।
क्या यही देश प्रेम है?
अपनी संस्कृति का बहिष्कार,
विदेशी से प्यार,
परायी हर वस्तु हमें बेहतर नजर आती है,
देश में ही हम परदेशी लगने लगे।
क्या यही देश प्रेम है?
स्वार्थ ने नैतिकता का,
काम तमाम कर दिया,
अपनी कुर्सी, अपनी जेब,
रो ले जनता, हालत देख
क्या यही देश प्रेम है?