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क्या रात सुहानी है क्या ख़ूब नज़ारा है / अनु जसरोटिया
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क्या रात सुहानी है क्या ख़ूब नज़ारा है
आ जाओ तुम्हें दिल ने ऐसे में पुकारा है।
ये झील की नीलाहट, ये पेड़, ये गुल बूटे
आ जाओ कहीं से तुम क़ुदरत का इशारा है।
इक जिस का सहारा था वो भी न मिला उस को
जाए तो कहाँ जाए तक़दीर का मारा है।
ये किस का तसव्वुर है, है किस का ख़याल आख़िर
इन बन्द दरीचों से ये कौन पधारा है।
जो शब भी गुज़र जाए ऐसे ही तो अच्छा हो
बस याद में तेरी ही दिन आज गुज़ारा है।
पीते हैं लहू दिल का, सो जाते हैं भूखे ही
बिन माँ के दुलारों का फ़ाक़ों पे गुज़ारा है।
ये हिन्द की धरती है, आकाश है भारत का
हर फूल है इक गुलशन हर ज़र्रा सितारा है।