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क्या लिखते हो खींच खींच / रामकुमार वर्मा

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क्या लिखते हो खींच खींच,
विद्युत की उज्ज्वल रेखा?
मैंने तो नभ को केवल
पृथ्वी पर रोते देखा॥
बादल के तिरछे तन को स्थिर
मैंने कभी न पाया।
प्रातः में भी दौड़ गई
संध्या की काली छाया॥
जीवन के पहले ही क्षण में कैसा अन्तिम क्षण है?
बोलो, क्या मेरे जीवन में छिपा मृत्यु का कण है?