क्या लिखूँ ? / रविकांत अनमोल
"भाषा भावनाओं को प्रकट करती है"
यह पढ़ा था
लेकिन जब भावनाएँ
शब्दों में ढलने से इनकार कर दें
और जब शब्द
भावनाओं के हमजोली न हों
तो तुम ही कहो
मैं क्या कहूँ, क्या लिखूँ ?
तुम्हें मैं रोज़ ही एक चिट्ठी लिखता हूँ,
सोच के कागज़ पर
कल्पना की कलम से ।
शब्द उसके कुछ धुँधले होते हैं
पर भाव सटीक साफ़ ।
और रोज़ ही
मुझे तुम्हारा उत्तर मिलता है ।
रोज़ ही मैं तुमसे मिलता हूँ
अपनी कहता हूँ
तुम्हारी सुनता हूँ ।
लेकिन शब्दों का सहारा लिए बिना ।
क्योंकि मेरे लिए
भाव एक चीज़ हैं और शब्द बिल्कुल दूसरी
भाव सूक्ष्म हैं और शब्द स्थूल
भाव निर्मल हैं और शब्द मलिन
भाव ब्रह्म हैं और शब्द संसार
इसलिए भाव कभी शब्दों में नहीं बँधते ।
इसीलिए शब्द भावों के हमजोली नहीं होते ।
भाव लिखे नहीं जाते और न कहे जाते हैं ।
फिर भी
तुम्हारे आग्रह पर ऐ दोस्त
मैं कागज़ कलम लिए बैठा हूँ
अब तुम ही बताओ
मैं क्या कहूँ ?
क्या लिखूँ ?