भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

क्या लौटना संभव नहीं शान्तनु ! / ध्रुव शुक्ल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

माँ की आंखों को रोशनी की धुंध से भरतीं
भागम-भाग के भय से भरतीं पिता को
प्रतीक्षा को बढ़ातीं
दूर ले जातीं घर से
मौत की मोटर साइकिलें
न जाने किस प्रतियोगिता में
दौड़ी चली जा रही हैं सड़कों पर
तुम्हारी उम्र की चौगुनी रफ़्तार से

शान्तनु !
क्या एक मोटरसाइकिल
इतनी दूर ले जा सकती है किसी को
जहाँ से लौटना संभव नहीं ?