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क्या सुनाएँ किसी को हाल अपना / महरूम
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क्या सुनाएँ किसी को हाल अपना
अपने दिल में रहे मलाल अपना
शर्म-सार-ए-जवाब हो न सका
बस-के ख़ुद्दार था सवाल अपना
किस ने देखा नहीं है बाद-ए-उरूज
साया-ए-चर्ख़ में ज़वाल अपना
हसरत-ए-दीद ले चले हम तो
आप देखा करें जमाल अपना
पेच-दर-पेच गेसू-ए-मुश्कीं
जा के उलझा कहाँ ख़याल अपना
दिल असीर-ए-बला-ए-ज़ुल्फ़-ए-दराज़
महव-ए-फ़रियाद बाल बाल अपना
मौत आई न इल्तिजाओं से
और जीना हुआ वबाल अपना
है ये पुर-दर्द दास्ताँ 'महरूम'
क्या सुनाएँ किसी को हाल अपना