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क्या हुआ तुमको अगर चेह्रे बदलना आ गया / कृष्ण कुमार ‘नाज़’
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क्या हुआ तुमको अगर चेह्रे बदलना आ गया
हमको भी हालात के साँचे में ढलना आ गया
रोशनी के वास्ते धागे को जलता देखकर
ली नसीहत मोम ने, उसको पिघलना आ गया
शुक्रिया ऐ पत्थरो! बेहद तुम्हारा शुक्रिया
सर झुकाकर जो मुझे रस्ते पे चलना आ गया
सरफिरी आँधी का थोड़ा-सा सहारा क्या मिला
धूल को इंसान के सर तक उछलना आ गया
बिछ गए फिर ख़ुद-बख़ुद रस्तों में कितने ही गुलाब
जब हमें काँटों पे नंगे पाँव चलना आ गया
चाँद को छूने की कोशिश में तो नाकामी मिली
हाँ, मगर नादान बच्चे को उछलना आ गया
पहले बचपन, फिर जवानी, फिर बुढ़ापे के निशान
उम्र को भी देखिए कपड़े बदलना आ गया