क्या हुआ तुम्हें / महेश चंद्र पुनेठा
तुम तो नहीं थे ऐसे नत्थू
क्या हुआ तुम्हें
बाज़ार का गणित तो
जानते ही नहीं थे तुम
चालाकी क्या होती है तुम्हें पता ही नहीं था
जो कहते थे सीधे-सपाट
मुँह के सामने कहते थे
पीठ पीछे बात करना तो तुम्हें कभी आया ही नहीं
किसी के घर पर आने पर
कितने ख़ुश हो उठते थे तुम
जो भी होता था भीतर कुछ खास
निकाल लाते थे अतिथि-सत्कार में
अपना धर्म समझते थे इसे
तुम तो केवल देना जानते थे
नहीं देखा तुम्हें कभी
इस तरह मोल-तोल करते हुए
न किसी की जेब में हाथ डालते हुए
न गरदन दबोचते
एक आवाज़ में दौड़ पड़ते थे तुम तो
अब तो तुम्हें आवाज़ सुनाई भी नहीं देती
कहाँ से सीख लिया यह सब तुमने
तुम तो नहीं थे ऐसे नत्थू
क्या हुआ तुम्हें?
तुम्हारी शिकायत
जब नहीं करते हो तुम
कोई शिकायत मुझसे
मन बेचैन हो जाता है मेरा
लगने लगता है डर
टटोलने लगता हॅू ख़ुद को
कि कहाँ ग़लती हो गई मुझसे ।