भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

क्या हुआ / महेन्द्र भटनागर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वही शिथिल, अस्वस्थ, रुग्ण है शरीर,

क्या हुआ पहन लिया नवीन चीर ?

वही थके चरण,

वही दबे नयन,

कि क्या हुआ क्षणिक सुरा

उतर गयी गले ?

निमिष नज़र के सामने

अगर यह छा गया चमन !

सपन बहार आ गयी !

समीर है वही गरम-गरम,

मरण-वरण बुख़ार

वही गिर रही

उसी प्रकार

शीश से मनुष्य के

अशेष रक्त-धार !

झनझना रहे

हृदय के तार-तार !

1951