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क्या है यह आकर्षण / रामेश्वरीदेवी मिश्र ‘चकोरी’
Kavita Kosh से
क्या है यह आकर्षण? कैसा है इसका इतिहास?
आँखों के मिलते ही बढ़ती क्यों अखों की प्यास?
अधर खोजते रहते अस्फुट अधरों की मुसकान;
यौवन हाथ पसार माँगता क्यों यौवन का दान?
हृदय स्वयं ही कर लेता है न्याय हृदय का आप;
बन जाता है अपनापन क्यों अपना ही अभिशाप?
एक वासना है, उसको सब क्यों कहते हैं प्यार?
अचिर उमंग-जनित यह कैसा है कलुषित व्यापार।
अब न देखना पगली इस नश्वर यौवन का रंग॥
एक सुनहरी छाया, जिस पर हँसता रहे अनंग।
इसी क्षणिक अस्पष्ट स्वप्न की परिभाषा है पाप।
जिसमें सीमित है ममता के जीवन का अनुताप।