क्या होगा? / सुशांत सुप्रिय
मुझे नहीं मालूम
मेरे ड्राइंग-रूम में टँगे कैलेंडर में बनी
तसवीर में बैठे तोते के पूर्वज
‘राम-राम’बोलते थे या’जय हिंद’
पर यदि किसी दिन
तसवीर से निकल कर
ड्राइंग-रूम में रखे सोफ़े पर
बैठ जाए यह तोता
और मुँह खोले तो निश्चित ही
‘दम मारो दम’ से ले कर
‘चोली के पीछे क्या है’ और
‘मेरी शर्ट भी सेक्सी’ से लेकर
‘काँटा लगा, हाय लगा’
बोलेगा यह तोता
क्योंकि ड्राइंग-रूम के दूसरे कोने में
पड़ा है टेलीविज़न
जिसमें लगा है केबल
जिसमें आते हैं अनेक ऐसे चैनल
जिनमें नाचती-गाती हैं
फूहड़ अधनंगी सिने-तारिकाएँ
जिन से काफ़ी कुछ सीख चुका होगा
यह बुद्धिमान तोता
यदि किसी दिन
ड्राइंग-रूम में बैठे किसी अतिथि के सामने
तसवीर से आ कूदा यह तोता
और खोल दी उसने अपनी बुद्धिमानी की पोल
तो मेरे तो हाथों के तोते उड़ जाएँगे
बहस का मुद्दा यह नहीं है कि
किस युग के तोतों ने
इस मुहावरे को जन्म दिया
बल्कि यह है कि
इस देश की रग-रग में
सेंध लगाती जा रही
आज की’कचरा-संस्कृति’
जब तसवीर में बैठे तोते तक का
‘ब्रेन-वाश’कर दे सकती है
तो हमारा-आपका क्या होगा?