भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
क्या होगा / रघुवीर सहाय
Kavita Kosh से
क्या होगा इस कभी-कभी के मधुर मिलन की घड़ियों का
जीवन की टूटी-टूटी इन छोटी-छोटी कड़ियों का
कैसे इनकी विशृंखलता मुझको-तुझको जोड़ेगी
क्या कल नाता वही जुड़ेगा आज जहा यह तोड़ेगी ?