कितने फूल गुँथे होते हैं उसमें
कितने रंग, कितने राग
कितने स्वप्न अस्फुट
या कितने भय
कितने विकल स्वर
असुरक्षित वन
कितना छूटा बालपन
बीती किशोर वय
सुदूर देखती
अधेड़ दिनों की ठहरी कतार
पूरब के एक उदास देश में
दुख का एक गीत रोता है
पथ पर
तुम पूछते हो
क्या होता है प्रेम!