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क्या होती है गरीबी/ सुरेश यादव
Kavita Kosh से
आग जिनके पेट में होती है
चूल्हे जिनके ठंडे होते हैं
छतें जो डालते हैं सारे दिन
खुले आसमान के नीचे सोते हैं
सड़कें जो बनाते हैं
चमचमाती कारों के लिए
बहुत मुश्किल से कुचलने से बचते हैं
फसलें उगाते हैं - देह जोत कर
और भूखे सो जाते हैं
अमीर लोग जब
अपनी रातों को सजा कर रखते हैं
गरीब अपनी लाल डोरे वाली आँखों में
रातों को जगाकर रखते हैं
ऊँचे, बहुत ऊँचे घरों की रोशनी
जब-जब उदास लगती है
नीची बहुत नीची ज़मीन से
ऊँची आवाज़ में गरीब गाते हैं